धर्म और राज्य : राम मंदिर और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
Ayodhya Ram Mandir धर्म और राज्य : राम मंदिर और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
हाल के दिनों में अयोध्या राम मंदिर और प्रधानमंत्री मोदी का उसके भूमि पूजन में जाने का मुद्दा बहुत सुर्खिया बटोर रहा हैं इस घटनाक्रम में सीपीआई (मार्क्सवादी ) ने केंद्र को पत्र लिख कर डी डी न्यूज़ के राम मंदिर...
more... के भूमि पूजन के प्रसारण पर रोक लगाने पर बल देते हुए कहा कि “यह भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के विरुद्ध हैं और इससे समझौता नहीं किया जाना चाहिए” .परन्तु वामपंथी दल की बात न केवल गलत व भ्रामक हैं बल्कि उनके दोहरे और पक्षपातपूर्ण चरित्र को भी उजागर करती हैं। परन्तु अब यह सवाल उठता हैं और इस बात की जाँच आवश्यक हो जाती हैं कि क्या वास्तव में ऐसा करना भारत के धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध हैं और क्या देश की राजनीति और राज्य सदैव संस्कृति से परे रहे हैं ?
क्यों हमारे संविधान निर्माताओ ने मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द नहीं जोड़ा और क्या वर्तमान घटना भारत के इतिहास में पहली ऐसी घटना हैं ? प्रधानमंत्री के अयोध्या जाने और इससे देश के बहुसांस्कृतिक पहचान पर क्या असर होगा ? और वामपंथी दल एसा क्यों बोल रहा हैं ? क्या वह पूर्वाग्रह मुक्त हैं ? इन सब प्रश्नों का उत्तर केवल ऐतिहासिक विश्लेषण के द्वारा खोजना ही वर्तमान को समझने की कुंजी हैं। इस इतिहास और वर्तमान के सम्बन्ध को प्रसिद्ध इतिहासकार ई.एच.कार अपनी पुस्तक में कुछ इस तरह परिभाषित करते हैं इतिहास भूतकाल और वर्तमानकाल के बीच एक संवाद की प्रक्रिया हैं।
पूरा लेख - Ayodhya Ram Mandir