अम्बेडकरनगर। 27 साल पहले जिस यात्री ट्रेन को बंद कर दिया गया था उसके लिए रेलवे को जिम्मेदार माना जा रहा है। हालांकि वास्तविक सच इसके इतर है। सच यह है कि अगर माननीयों ने इच्छाशक्ति दिखाई होती और आवाज बुलंद किया होता तो अकबरपुर-टांडा यात्री ट्रेन बंद नहीं हुई होती। जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा और उदासीनता के ही चलते रेलवे यात्री ट्रेन का संचालन बंद कर सका था और इसी के चलते रेलवे फिर से यात्री ट्रेन का फिर से परिचालन नहीं कर रहा है।कड़वा सच यही है कि आजाद देश भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार और उसके जनप्रतिनिधियों ने उस टांडा की उपेक्षा की जिसे ब्रिटिश सरकार ने भरपूर सम्मान दिया था। विकास के लिए अकबरपुर से टांडा तक रेल लाइन बिछवाई थी। टांडा के कपड़ों को देश के कोने कोने तक पहुंचाने की व्यवस्था दी थी। देश के किसी भी कोने से टांडा तक रेल...
more... मार्ग से पहुंचने की सुविधा प्रदान की थी। यह विडम्बना ही है कि देश को गुलाम बनाने वालों ने टांडा को विकास के शिखर पर ले जाने के लिए रेल लाइन, रेलवे स्टेशन और रेल सुविधा दी थी और आजाद देश की सरकार और उसके नुमाइंदों ने सुविधा और व्यवस्था सब कुछ खत्म कर दिया। जनता का वोट लेकर संसद में पहुंचने वाले दिवंगत राम अवध, राम पियारे सुमन से लेकर धनश्याम चन्द्र खरवार, त्रिभुवन दत्त, राकेश पांडेय, हरिओम पांडेय में से किसी ने भी बंद ट्रेन के फिर से परिचालन के बाबत संसद में आवाज नहीं उठाई। वर्तमान संसद रितेश पांडेय ने संवाद में तो बंद ट्रेन का मुद्दा रेल भवन, रेल मंत्री और संसद तक ले जाने का दम तो भरा मगर चन्द रोज पहले रेल भवन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन से मिलने के बाद भी बंद ट्रेन का मुद्दा नहीं उठाया। अन्य कई मामलों से सम्बंधित मांग पत्र तो दिया मगर पूर्व सांसदों की ही तरह टांडा की उपेक्षा करते हुए बंद ट्रेन के फिर से परिचालन के बाबत मांग पत्र में उल्लेख तक नहीं किया।न जनता ने किया सवाल, न उठा मुद्दा :यह भी बहुत अहम है कि टांडा की जनता भी समय के साथ चलने को कभी तत्पर नहीं हुई। इसी कारण न माननीयों ने तवज्जों दिया और न बंद रेलवे क्रॉसिंग को खोलने के लिए महीनों आंदोलन चलाने वाले एवं रेलवे के खिलाफ संघर्ष समिति बना कर मोर्चा खोलने वाले ने ही बंद ट्रेन को मुद्दे पर कभी आंदोलन ही किया।