@IM UR LOVER: Re# 220278-70
आजादी आजादी की 65वीं सालगिरह पर भारत सिर्फ अपनी दुविधाओं से नहीं जूझ रहा बल्कि दुनिया के हर देश की अर्थव्यवस्था एक दूसरे से गुंथी हुई है। यह अनिश्चितता का काल है। यूरोप और अमेरिका मंदी और दंगों का सामना कर रहे हैं। रूस घर में ही पनपे फासीवाद से जूझ रहा है और चीन अपनी अंतहीन आकांक्षाओं की गिरफ्त में है। ऐसे बदलावों के दौरान हमें यह सोचना जरूरी है कि भविष्य के भारत की तस्वीर कैसी होगी।
हम समाजवाद और पूंजीवाद के बीच झूलते रहते हैं।...
more... लेकिन दोनों के बीच एक स्वाभाविक तकरार है। इसलिए यह सवाल पैदा होता है कि दीर्घकालीन विकास के लिए किस तरह के मॉडल की जरूरत है। भारत की वास्तविकताएं बाकी देशों से अलग हैं। भारी आबादी और खंडित पहचानों वाले इस देश में आर्थिक असमानताएं है। इस समय दुनिया में कोई भी मॉडल ऐसा नहीं है जो भारत की दिक्कतें पूरी तरह सुलझा दे। इसलिए हमें भारतीय मॉडल का विकास करना होगा। 64 साल के स्वतंत्र लोकतंत्र के बाद आज हमारी जरूरत हिंदुस्तानी विचारों से बने हिंदुस्तानी मॉडल की है।
आजादी के बाद देश में विमर्श और बहस के मुद्दे लगातार बदलते और बढ़ते रहे हैं। बहसों का ना सिर्फ दायरा बढ़ा है, बल्कि इनकी संख्या भी बढ़ी है। लेकिन बहसों की बहुलता से यह नहीं कहा जा सकता कि हम ऐसे समाज में तब्दील हो गए हैं जो बहस के जरिए अपनी समस्याओं को सुलझा ले।
बहस की तादाद बढऩा कुछ लोगों की बुद्धिमानी या संवाद की शक्ति का संकेत देती हैं। सिविल सोसाइटी और सरकार अंतहीन बहस कर सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इन बहसों से समस्याएं सुलझ जाएंगी। किसी भी समाज में बहस और संघर्षों का स्तर बदलता रहता है। समाज में पैदा चिंता, सरकार और देश के नेतृत्व में इसके विश्वास के स्तर से इनमें उतार-चढ़ाव आते हैं। लेकिन वास्तविक बदलावों के लिए बहसों के साथ सही और सटीक काम किए जाने की जरूरत है।
पूरी दुनिया में इस समय मध्य वर्ग भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अक्षमता और सामाजिक अन्याय से दुखी है और इससे लड़ रहा है। मि और मध्य पूर्व में मध्य वर्ग की सक्रियता ने वहां की सरकारों और तानाशाहों की सत्ता छीन ली।
भारत में भी सिविल सोसाइटी को मध्य वर्ग के इसी गुस्से से समर्थन मिल रहा है। मध्य वर्ग बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार और सामाजिक सेवाओं की गैरमौजूदगी और इंसाफ दिलाने में नाकाम हो रही अदालतों की वजह से गुस्से से उबल रहा है। देश में यह वर्ग सबसे मुखर है। लेकिन उसकी यह मुखरता लोकतंत्र में भागीदार होगी, यह जरूरी नहीं क्योंकि मध्य वर्ग कभी लोकतंत्र में शामिल नहीं होता, वह कम ही वोट करता है। एक लोकतांत्रिक देश में मध्यवर्ग की अगुवाई में होने वाले किसी भी बदलाव की यह एक बड़ी खामी है।