इटारसी नवदुनिया प्रतिनिधि।
निर्धारित किराया देने के बावजूद रेलवे अपने कर्मचारियों को बेहतर आवास देने में नाकाम साबित हो रही है। कई दशक पहले बनाई गईं रेल कॉलोनियां अब जर्जर हो चुकी हैं। मकानों की छत से लेकर सीवर लाइन तक क्षतिग्रस्त हो गई है। कहीं शौचालय में दरवाजे नहीं हैं तो कहीं बाथरूम में नल गायब हैं। मकानों में बारिश के दौरान इतनी ज्यादा सीलन और लीकेज आता है कि रेलकर्मियों को कमरे खाली करना पड़ जाता है। आवासों की तरह इतनी खराब है कि यहां मवेशी भी नहीं रह सकते, लेकिन मजबूरी में रेलकर्मी नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।
मरम्मत...
more... पर लाखों खर्चः पिछले साल वेस्ट सेन्ट्रल रेलवे मजदूर संघ ने जर्जर आवासों का सर्वे सूची बनाकर आईओडब्लयू को सौंपी थी, इसके बाद विभाग ने मरम्मत का काम तो कराया लेकिन वह भी कामचलाऊ रहा। कर्मचारी बताते हैं कि हर साल रेल विभाग मेंटनेंस के नाम पर लाखों रुपये खर्च करता है, लेकिन उससे कोई राहत नहीं मिल पाती। सेनेट्ररी, पुताई एवं मरम्मत के छोटे टेंडर में होने वाले घटिया काम को लेकर अफसरों पर भी सवाल उठते हैं।
इन्हें मिलते हैं आवासः रेल अधिकारियों के अनुसार रेलवे कॉलोनियों में आरबी 1 से लेकर आरबी-5 रैंक के आवास होते हैं। इनमें 1800 ग्रेड वाले कर्मचारियों को आरबी-1, 1900-2800 पे पर आरबी-2, 4200-4600 ग्रेड पे पर आरबी थर्ड, डिपो प्रभारी, सुपरवाइजर एवं रनिंग स्टॉफ को 30 फीसद मार्जिन देकर आरबी-4 श्रेणी के आवास मिलते हैं। आरबी-5 श्रेणी के बंगले इटारसी में मात्र दो हैं, इनमें सीनियर डीएमई और सीनियर डीईईई निवास करते हैं। खास बात यह कि अफसरों के बंगलों में हर साल नियमित मरम्मत और साजो-सामान की सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं, ये बंगल चमचमाते रहते हैं, लेकिन छोटे कर्मचारियों के आवासों की हालत बहुत ज्यादा खराब है, यहां तबेले जैसा माहौल रहता है।
किराए में करोड़ों की कमाईः रेलवे स्क्वायर फीट के हिसाब से आरबी-1 में 150 रुपये एवं आरबी सेंकड पर 219 रुपये इस तरह किराया तो लेती है, लेकिन जर्जर आवासों में सुधार नहीं कराती। 18 बंगला एवं 12 बंगला में 400 से ज्यादा कंडम आवासों को रेलवे तुड़वा चुकी है।
यहां इतने आवासः रेलवे जंक्शन की न्यूयार्ड आवासीय में सबसे ज्यादा रेल आवास हैं, इसके अलावा 12 बंगला, 18 बंगला, पोटरखोली एवं 3 बंगला में भी रेलवे की कॉलोनी है, हालांकि सभी जगह अधिकांश आवास खराब हो चुके हैं।
मल्टी स्टोरी योजना अधर में: रेलवे ने पांच साल पहले बड़े स्टेशनों एवं डिपो से लगे एरिया में कंडम आवास तोड़कर सर्वसुविधायुक्त मल्टी स्टोरी बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन इस पर काम शुरू नहीं हो सका। रेल आवासों की कमी भी बढ़ रही है। आवंटन के लिए सैकड़ों रेलकर्मियों के आवेदन पड़े हैं, लेकिन आवास घटते जा रहे हैं। कर्मचारियों की मजबूरी यह है कि अपने कार्यस्थल के आसपास रहने से उन्हें ड्यूटी पहुंचने में आसानी होती है, कई रेलकर्मी आवास खराब होने के कारण किराए के मकानों में रहने को मजबूर हैं।
यह है समस्याः
मकानों की छत लीकेज होती है, सीमेंट शेड टूट चुकी हैं।
पेयजल की पाइपलाइन एवं पिछले हिस्से में सीवेज ध्वस्त होने से गंदा पानी जमा रहता है।
मकानों की नींव कमजोर हो चुकी है। खिड़की-दरवाजे टूट चुके हैं, कई मकानों में शौचालय की शीट और बाथरूम का फर्श उखड़ चुका है।
कॉलोनियों की सड़कें खराब हो चुकी हैं। कॉलोनियों के आसपास बने पार्क, खेलकूद मैदान बदहाल हैं।
वर्जन
संघ इस मामले में कई बार अधिकारियों को शिकायत कर चुका है, पिछले साल सर्वे भी किया गया था। रेल आवास अब पूरी तरह खराब हो चुके हैं, इनकी जगह मल्टीस्टोरी कॉलोनी बनाने की जरूरत है।
आरके यादव मंडल, सचिव वेसेरेमसं।
वर्जन
इस मामले में पीएनएम आइटम भी रखा जा चुका है। यूनियन जल्द ही इस मामले में अधिकारियों से चर्चा करेगी। जर्जर आवासों को तोड़कर नए आवास निर्माण के लिए चर्चा करेंगे।
केके शुक्ला, कार्यकारी अध्यक्ष वेसेरेमयू।