काम की प्रगति देख के कुछ ऐसा ही आभास हो रहा था, की ये परियोजना एक बार और लंबित होगी ! और अंततः वही हुआ | ज़मीनी हकीकत बयां करूँ तो कुछ ऐसा है, की पिछले कुछ दिनों से काम में अचानक तेज़ी तो दिखी है, तेज़ी भी वैसी जैसी काम को ख़त्म करने के लिए ज़रूरी होती है, पर दुःख और चिंता इस बात की है, की इस पूरे परियोजना में गति एक सामान नहीं रही कभी | इसी कारण वक़्त बढ़ता चला गया | लखनऊ छोर पे काम में काफी वृद्धि दिख रही है, जैसे अधिकारीयों का दबाव हो मानो, पर वही सीतापुर छोर पर काम ठहर गया है, जो जैसा था वैसा ही पड़ा हुआ है | फरवरी 2018 अब काम को देखते हुए, लग रहा है की सही अनुमान लगा के, बोला गया है !